क्या कभी आप लोगों ने सोचा कि आखिर पृथ्वी जैसा ग्रह ही मनुष्यों के लिए जीवन जीने के अनुकूल क्यों है? नहीं!! मैं बताता हूँ क्योंकि पृथ्वी पर पाया जाने वाला वातावरण अन्यत्र किसी ग्रह के पास नहीं है. अगर यह वातावरण नहीं होता तो पृथ्वी पर दिन और रात का तापमान अपने न्यूनतम एवं अधिकतम मान से कहीं ज्यादा ऊपर या नीचे होने कि संभावना रहती. इसी वातावरण के कारण ही पृथ्वी पर सुखद एवं बेहतर पर्यावरण का निर्माण संभव हुआ.

अब आप सोचेंगे यह पर्यावरण क्या है?? पर्यावरण अर्थात हमारे (मनुष्य के) आसपास का वातावरण जो कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमसे जुड़ा हुआ है तथा दोनों द्वारा किये गए किसी प्रकार के क्रिया कलापों से एक दुसरे पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. हालाँकि पर्यावरण के बारे में बताने कि ज्यादा आवश्यकता नहीं है क्योंकि आज इस शब्द से सभी लोग भली भांति परिचित हैं. परन्तु पृथ्वी को भी इस स्वरुप में आने के लिए ऐसे कई जैव-भू -रासायनिक प्रक्रियाओं और जलवायु परिवर्तनों से होकर गुजरना पड़ा, तब जाकर पृथ्वी ने अपने इस अस्तित्व को प्राप्त किया. अब आप सोचेंगे ये जलवायु परिवर्तन कौन सी बला है?? तो सज्जनों इस के बारे में भी मैं आपका ज्ञान वर्धन कर रहा हूँ, जरा सब्र कीजिये. तो सुनिए……

जलवायु परिवर्तन इस सर्वव्यापी एवं प्रसिद्ध शब्द से परिचित कराने से पहले मैं आपको जलवायु क्या होती है उस पर आप सभी लोगों का ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूँ. “जलवायु किसी स्थान पर पिछले कई वर्षों (वैज्ञानिको के अनुसार लगभग ३० वर्ष) के अंतराल में वहां के मौसम की स्थिति को बतलाता है”. जलवायु शब्द से हमें कोई स्थान कैसा है, इस बात का पता चलता है, जैसे: आर्द्र जलवायु, शुष्क जलवायु इत्यादि.

अब आप से एक प्रश्न क्या जलवायु में परिवर्तन एक प्राकृतिक घटना है या मानव जनित? आपलोगों में से बहुत से लोगों का जवाब होगा मानवजनित!! परन्तु यह गलत है. दरअसल जलवायु परिवर्तन एक प्राकृतिक घटना है, और इसका साक्षात् उदहारण है अतीत के हिमयुग. आपलोगों ने होलीवूड की फिल्म ICE AGE की श्रृंखला तो देखि ही होगी, जिसमे हिमयुग के बारे में स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है.. एक बात सबसे जादा महत्त्वपूर्ण है, जिसे आप सभी को बताना अत्यंत आवश्यक है, वो है की अतीत में ऐसे परिवर्तनों को होने में काफी समय या कह सकते हैं की काफी वर्षा लगते थे.. और इसका एकमात्र कारण था हमारे जीवनशैली और हमारे जीवन स्तर का संतुलित होना. हम संख्या में भी कम थे, हमारी जरूरतें भी कम थीं और हमें संसाधनों के समुचित उपयोग का ज्ञान था.

परन्तु वर्त्तमान में जलवायु परिवर्तन की दर में काफी तेजी आई है जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी अब तेजी से गरम हो रही है. इस परिवर्तन के पीछे का क्या कारण हो सकता है कभी आपने या यों कहें की हमने कभी इस बारे में सोचा? शायद हममें से कुछ ही लोग इस दिशा में सोचते हैं. आइये इतिहास में चलते हैं और इसके पीछे का कारण जानते हैं. आपको याद है औद्योगिक क्रांति जी हाँ लगभग २०० वर्षों पहले आरम्भ हुई इस क्रांति की शुरुआत ने इस महान त्राशदी नीव डाली. यही वो महान अवसर था जिसके फलस्वरूप मशीनों द्वारा भारी मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन होने लगा… बढती जनसँख्या की मांग को पूरा करने के लिए और उद्योगों की स्थापना करनी पड़ी.

इन उद्योगों में लगी मशीनों को चलाने के लिए उर्जा की आवश्यकता हुई और इसके लिए हमने कोयले और तेल जैसे इंधन का प्रयोग करना पड़ा, जिसके कारण वायुमंडल में गैसीय मिश्रण का संतुलन प्रभावित हुआ. यही नहीं हमने अपने जीवन स्तर को सुधारने के लिए ऐसे भौतिक संशाधनों, जैसे AC, motorcycle, प्लास्टिक के थैले इत्यादि को प्रयोग करना सीख लिया, जिसके कारण वातावरण में नयी गैसों का उत्सर्जन होने लगा. यह कहना गलत नहीं होगा कि आज मानव मात्र कि जीवन शैली पूर्णतया उर्जा पर निर्भर है.

इसके अतिरिक्त हमने अपने आवास स्थानों के लिए, खेती करने, यातायात के लिए या अपनी सुख सुविधाओं की खातिर उन न बोल सकने वाले पेड़ों को भी काट दिया, जो इस वातावरण को शुद्ध रखने और पृथ्वी को ठंडा रखने में मदद करते थे. एक शोध के अनुसार “आज विश्व पिछले २००० वर्षों के किसी भी समय की अपेक्षा अत्यधिक गरम है. और एक तथ्य जो सबसे महत्त्वपूर्ण है वो यह की २० वीं शताब्दी के दौरान वैश्विक तापमान लगभग ०.६ डिग्री सेन्टीग्रेड तक बढ़ा है. अब हम यह कह सकते हैं कि वर्त्तमान समय में मानव ही पर्यावरण में हो रहे उथल-पुथल का प्रमुख रूप से उत्तरदायी है.

अब प्रश्न उठता है कि क्या किया जाना चाहिए? हम ये नहीं कहते कि आप भौतिक सुख संसाधनों का प्रयोग करना बंद कर दीजिये. हम तो बस ये कहना चाहते हैं कि हम में से प्रत्येक को अपनी जीवनशैली में बदलाव लेन की आवश्यकता है. पृथ्वी के पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन का सीधा सम्बन्ध “उपभोग” से है. और यह उपभो हमारी जीवनशैली से सम्बंधित है. हम जो भी वस्तुएं खरीदते हैं, जिस प्रकार के संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं, जैसे जीवन जीते हैं, उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव हमारे पर्यावरण पर पड़ता है.

पृथ्वी के वातावरण में या यों कहें की जलवायु में वाकई में परिवर्तन हो रहा है, जिसपर हम सभी को ध्यान देने की जरूरत है. हम इस बदलाव को रोकने के लिए अपनी जीवनशैली में छोटे छोटे परिवर्तनों को ला कर काफी मदद कर सकते हैं. व्यक्तिगत रूप से किये जा सकने वाले कुछ उदाहरण है:

१. बिजली बचाएँ अर्थात आवश्यकता न पड़ने पर वैद्युत उपकरणों को बंद कर दें, उसे स्टैंड बाय मोड़े पर न रखें.

२. पैदल चलें या सार्वजनिक यातायात साधनों (बस या ऑटो) का प्रयोग करें अर्थात कम दूरी के लिए निजी वाहनों का प्रयोग करने क बजे पैदल चलें या साइकिल का प्रयोग करें.

३. वाहनों को आराम से या निर्धारित गति सीमा में चलायें.

४. जहाँ तक संभव हो अपने कार्यालय स्थल में या घर पर बिजली की बचत करें.

५. जल संसाधनों का मितव्ययी तरीके से इस्तेमाल करें.

६. कागज़ बचाएं. जहाँ तक संभव हो कागज के दोनों सतहों का प्रयोग करें, तथा छात्र अपनी पुराणी कापियों में बचे हुए पन्नों से एक अलग रफ कापी तैयार कर सकते हैं, इस प्रकार से आप अप्रत्यक्ष रूप से पेड़ पौधों को काटने से बचाते हैं.

७. कचरे को कभी न जलाएं.

८. कचरे को निर्धारित स्थानों पर ही फेंके.

९. बाजार जाते हुए कपडे के थैले का प्रयोग करें. यदि संभव हो तो एक ही पोलीथिन को कई बार इस्तेमाल करें.

१०. कूड़े कचरे को पोलीथिन की थैलियों में भर कर न फेंके, इस प्रकार से आप अनायास ही गौ हत्या के पाप से बच सकते हैं.

११. अपने जन्मदिन पर एक पौधा अवश्य लगायें. अपने मित्र के किसी हर्ष उत्सव पर उसे पौधा भी भेंट करें.

१२. गर्मियों के समय में अपने छतों पर पानी का बर्तन और दाना की व्यवस्था करें जिससे की पक्षियों की आकस्मिक मृत्यु न हो.

अब आपसे एक आखिरी प्रश्न क्या ऊपर बताये गए किसी भी उपाय में कहीं भी धन का खर्च है? क्या ये सभी उपाय करने योग्य नहीं है? क्या ये उपाय कारगर नहीं हैं? आप खुद सोचिये इसके बारे में. क्योंकि हमारे पास रहने के लिए सिर्फ एक ही पृथ्वी है. और आने वाली पीढ़ी को भी इस ग्रह पर निवास करना है.

क्या हम अपने भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को ऐसी पृथ्वी देंगे जहाँ पर गन्दगी हो, धुल का गुबार हो और असहनीय जलवायु हो….

सोचिये आज से, अभी से, इसी वक्त से और कुछ कर दिखाईये अपनी भावी पीढ़ी के लिए…

जय पृथ्वी माता की.

आशुतोष कुमार द्विवेदी

पर्यावरणविद या पर्यावरण मित्र

E-mail me when people leave their comments –

You need to be a member of Paryavaran.com- Indian Environment Network to add comments!

Join Paryavaran.com- Indian Environment Network

Comments

  • A beautiful piece in Hindi,a very suitable for every body.PL keep it.

    DrB N das

    http://body.PL/
  • Thank you very much to all!! And please possible share this message to all of your network

    My next article is on Climate change and Global Warming, And Also on Ped ki Atmakatha.

    Wait for these articles

  • very informative for non environmental background. students, or other people......... 

  • I appreciate your views Dwivedi ji. The excretion of PLANTS (Oxygen) food for animal kingdom, and the excretion of and the ANIMAL KINGDOM (Mannure) is food for Plants. This circle has been broken by man by construction of septic tanks and not properly disposing the sewage. More over the vegetation is being secrificed for so many reasons. The Forests are fighting with their back to the wall. And no body, who matters, is worried.

  • very nice

    plz make such notes on only on climate change and global warming plz

     

  • Indeed a very informative writeup, providing the deepest of insight through the easiest of word selections. thanks ashutosh for sharing with us your writeup

  • Wonderful information...I will share

  • Good lesson to all of readers.

  • Nice and informative. special in hindi language. I have shared this.

     

    Regards

This reply was deleted.