पानी की कहानी
पानी बहता है
यहाँ से वहा - इधेर से उधेर
वहा से यहाँ - उधर से इधर
लकिन
बहता है ऊपर से निचे ही
बहना जरुरी भी ह उसके लिए
अपने लिए भी , पर.........
पानी बहता है बदलो से जमी तक
पहाड़ो से नालो तक
नालो से नदी तक
न रुकता न थकता बस बहता है
नदी से बड़ी नदी
बड़ी नदी से समुन्द्र तक
जो नहीं बहता वो रुक जाता ह
तालाबो में , पोखरों में और उन छोटे गड्डों में
पर फिर भी कोसिस करता है बहने की
तालाबो से नहरों में ,
नहरों से खेतो में
खेतो से फसलो में
फसलो से ...........
फसलो का पानी कुख जाता ह अनाजो में दानो में
फिर भी कोसिस करता है , आपनो को बुलाने की
जब जाता है मुह में
तो बुलाता है पीछे रुके हुए , कही बिचड़े हुए आपने साथी पानी को
की आजा आब चलते है , बहते है कही और
गटक लिया जाता ह अन्दर
अब तो शायद रुकेगा
पर नहीं
फिर बह निकलता ह कही और
मिलता ह आपने साथियो से
बहता है नालियों से- पर रुकता नहीं चाहूऔर
चाहे गर्मी हो या हो सर्दी
और हो बारिस का समय
मेरा काम है बहना, यही है मेरा गहना
- गोपाल (उदैपुर से )
Comments
very simple and tru to life
Awesome....
good
शहर के लोग बचाते है
हमने सुना है
Wonderful must be shared
Good....., very good...., excellent.....
wow....................